लम्हा

|| कौन कहता है की दूरियों ने कभी है प्यार को बढ़ाया
यहाँ तोह तन्हाइयों का समा घर कर गया
उम्र भर हमने जो महफ़िल थी सजाई
पलक झपकते ही बंजर जहाँ बन गया ||
|| काश ख़ामोशियों को किसी ने ज़ुबान दी होती
वोह भी दे पाती हमें कोई वजह
की चुप क्यूँ वोह हमेशा रहती
जब आती कोई रूह से सदा ||
|| की अजीब हैं कितनी ये आँखेन तुम्हारी
हर वक़्त सचाई की कहानी
फरियाद करें भी तो कब तक हम
जब अपनी ज़ुबान ही नही देती साथ तुम्हारी ||

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